Title: नवजागरण काल का स्त्री स्वर
Article-ID 202008015/I GLOBALCULTURZ Vol.I No.1 Jan-April 2020 Language::Hindi
Domain of Study: Humanities & Social Sciences
Sub-Domain: Literature-Criticism
गौरी त्रिपाठी (डॉ0)
एसोसिएट प्रोफेसर,हिन्दी विभाग, गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय कोनी ,बिलासपुर छत्तीसगढ़ -495001 भारत
[E-mail: tripathigauri07@gmail.com] [Mob:+91-9452206059]
Summary in English
The Research Paper entitled “NAVJAGRAN KAAL KA STRI SWAR” aims to investigate the contributions of renaissance movements in Indian Society. This work gives a brief account of the position of women in early Indian society and the role played by social reformers for socio- economic development of women through various movements. The work highlights the particular efforts of Brahmasamaj, Arya Samaj, Theosophical Society, Ramakrishna Mission and Prarthana Samaj and different renowned Reformer's noble piece of work in bringing up women into the vanguard of Indian society.
भारत में नवजागरण को हम बड़े परिवर्तन के रूप में देखते हैं ।19वीं सदी की शुरुआत से दस्तक शुरु हो जाती है । वैसे यह सामाजिक बुनियादी परिवर्तनों के शुरुआती संदर्भ में लिया जाता है लेकिन एक मुख्य बात जो राष्ट्रीय नव जागरण के संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण बन जाती है वह है स्त्री सवाल । स्त्री को मुख्य सामाजिक सवालों के केन्द्र में लाया जाता है । सबसे बड़ी बात थी कि इस नवजागरण काल में स्त्रियों की स्थिति सुधारने के लिए आंदोलनों की शुरुआत हुई |आधुनिक शिक्षा या पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के कारण समाज सुधारकों का ध्यान स्त्रियो की सामाजिक दशा की तरफ जाने लगा ।ऐसा बिल्कुल भी नहीं था कि आधुनिक काल अपने स्त्री के प्रति सारे पूर्वाग्रहों और दुराग्रह को छोड़ चुका था | सामाजिक कुरीतियों का विरोध और स्त्री शिक्षा को लेकर कानून बनना ऊपरी तौर पर नवजागरण आंदोलन का स्त्री मुक्ति का चेहरा तो दिखाता है लेकिन अगर गहराई से देखें तो थोड़े बहुत परिवर्तनों के साथ स्त्री उसी जगह पर स्थापित थी |फिर भी प्रयास काफी किया गया कि स्त्रियों की स्थितियां सुधरे।