GLOBALCULTURZ ISSN:2582-6808 Vol.INo.3 September-December2020
Article-ID 2020110022/I Pages240-248 Language:Hindi Domain of Study: Humanities & Social Sciences SubDomain: Literature-Short Story Title: जादू टूटता है
कैलाश बनवासी 41, मुखर्जी नगर,सिकोलाभाठा दुर्ग, छत्तीसगढ़ (भारत)
[E-mail: kailashbanwasi@gmail.com[[M+91-9827993920]
Note in English A short Story in Hindi
About the Author
जन्म-10 मार्च 1965,दुर्ग
शिक्षा- बी0एस-सी0(गणित),एम0ए0(अँग्रेजी साहित्य),बी.एड.
1984 के आसपास लिखना शुरू किया। आरंभ में बच्चों और किशोरों के लिए लेखन।
कृतियाँ-
सत्तर से भी अधिक कहानियाँ देश की विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। अब तक चार कहानी संग्रह प्रकाशित-‘लक्ष्य तथा अन्य कहानियाँ’(1993),‘बाजार में रामधन’(2004) तथा ‘पीले कागज की उजली इबारत’(2008) ,प्रकोप तथा अन्य कहानियाँ (2015),’जादू टूटता है’(2019 )
कुछ कहानियाँ विभिन्न संग्रहों में चयनित।कहानियाँ गुजराती,पंजाबी,मराठी,बांग्ला तथा अँग्रेजी में अनूदित। संग्रह ‘बाजार में रामधन’ मराठी में अनुदित।
एक उपन्यास -‘लौटना नहीं है’
सम-सामयिक घटनाओं तथा सिनेमा पर भी जब-तब लेखन।
कहानियों पर रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर से पी.एच.डी.हेतु शोध-प्रबंध।समग्र कहानियों पर जे.एन.यू. नई दिल्ली से तथा देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर से कहानी संग्रह ‘बाजार में रामधन’ तथा उपन्यास ‘लौटना नहीं है’ पर लघुशोध प्रबंध।
पुरस्कार- कहानी ‘कुकरा-कथा’ को पत्रिका ‘कहानियाँ मासिक चयन’(संपादक-सत्येन कुमार) द्वारा 1987 का सर्वश्रेष्ठ युवा लेखन पुरस्कार।
कहानी संग्रह ‘लक्ष्य तथा अन्य कहानियाँ’ को जनवादी लेखक संघ इंदौर द्वारा प्रथम श्याम व्यास पुरस्कार।
दैनिक भास्कर द्वारा आयोजित कथा प्रतियोगिता ‘रचना पर्व’(2002) में कहानी ‘एक गाँव फूलझर’ को तृतीय पुरस्कार।
संग्रह‘पीले कागज की उजली इबारत’ के लिए 2010 में प्रेमचंद स्मृति कथा सम्मान।
वर्ष 2014 में वनमाली कथा सम्मान, गायत्री कथा सम्मान 2016
संप्रति- अध्यापन।
‘‘सर,क्या मैं अंदर आ सकता हूँ ?’’
प्रिंसिपल ने स्कूल के फंड से पैसे बैंक जाकर निकलवाने के लिए मुझे अपने कक्ष में बुलवाया था।प्राचार्य चेक साइन कर चुके थे।तभी कमरे का परदा जरा-सा हटाकर भीतर आने की इजाजत चाहता वह खड़ा था।
प्राचार्य ने इशारे से उसे आने की अनुमति दी।वह भीतर आ गया, आभर में केवल मुस्कुराते ही नहीं, हाथ जोड़े हुए।
‘‘ हाँ,कहो...?’’