संत वाणी और युगीन प्रासंगिकता (हिन्दी संत काव्य के सन्दर्भ में)

GLOBALCULTURZ ISSN:2582-6808 Vol.I No.3 September-December2020 

Article-ID 2020120024/I  Pages253-257 Language:Hindi Domain of Study: Humanities & Social Sciences  Sub-Domain: Literature-Criticism Title: संत वाणी और युगीन प्रासंगिकता (हिन्दी संत काव्य के सन्दर्भ

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 संजय कुमार लक्की (डॉ.)  एसोसिएट प्रोफेसर हिन्दी, राजकीय महाविद्यालय शाहाबाद जिला बारां, राजस्थान (भारत)

[E-mail: sanjaykumarlucky@yahoo.com[[M:+91-9462554518]                                                                                                   

Note in English  Hindi Criticism


About the Author

सम्प्रति- एसोसिएट प्रोफेसरहिन्दी’, राजकीय महाविद्यालय शाहाबाद जिला बारां, राजस्थान

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‘‘जाति पाँति पूछे नहीं, हरि को भजे सो हरि को होई’’ एवंघट घट व्यापक राम, ब्रह्म बीज का सकल पसारा हिन्द-तुरक का कर्त्ता एक, पीर सबन की एक सी, की गंगा-जमुनी परंपरा एवं धर्म के नाम पर मानव-धर्म एवं लोक धर्म की प्रतिष्ठा करने का पहला प्रयास हिन्दी साहित्य में, भक्ति काल के अन्तर्गतसंत साहित्य’, ज्ञानाश्रयी मार्गी भक्त कवियों संतों द्वारा हुआ। अस्वीकार का दुस्साहस रखने वाले अक्खड़, फक्कड़, घुमक्कड़ इन संतों नेमसि कागद छुयो नहीं, कलम गहि नहीं हाथसेढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होयकी दीर्घ अध्यात्म यात्रा तय की एवं स्वानुभूत सत्य, मर्म को जनभाषा, सधुक्कड़ी भाषा में, देशज परंपरा से सिक्त कर जनभाषिक प्रतीकों, मिथकों, रूपक योजना से सहज वाणी से परंपरा प्राप्त वेद, उपनिषद, जैन, बौद्ध, महायान, कापालिक-तांत्रिक साधना आदि से प्राप्त सत्य, अनुभव को लोकानुभव लोकानुभूति को सर्वग्राह्य, सर्वसुलभ बनाया। वस्तुतः ‘‘संत द्वारा, भक्ति साहित्य इस देश का सर्वाधिक प्रबल, विराट सांस्कृतिक आंदोलन1 बना जिसकी जड़ें गाँव गाँव, देश देश, देश प्रदेश में फैली” [1]  

दुश्मन साथी

              GLOBALCULTURZ ISSN:2582-6808 Vol.INo.3 September-December2020

 Article-ID 2020110023/I  Pages249-252 Language:Hindi Domain of Study: Humanities & Social Sciences  Sub-Domain:Literature Short Story Title: दुश्मन साथी    

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श्रध्दा थवाईत  एफ-5, पंकज विक्रम अपार्टमेंट शैलेन्द्र नगर, रायपुर, छत्तीसगढ़ (भारत)

[E-mail: shraddhathawait@gmail.com[[M:+91-9424202798]                                                                                                   


Note in English A short Story in Hindi

 About the Author                                                                                                                                                                                                                                                                                                    

जन्म तिथि: 01.01.1971                                                 

शिक्षा- एम.एस.सी. (वनस्पतिशास्त्र), 

रुचियाँ- साहित्य के अध्ययन एवं लेखन में रूचि

सम्प्रति- राज्य वित्त सेवा अधिकारी, छत्तीसगढ़


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सूदूर बस्तर में, साल के इस घनघोर घने जंगल में, पथरीले पठार में फैले छोटे-बड़े, हरे-भरे पेड़ ही पेड़ नजर आते हैं. मीलों दूर चलने पर मिट्टी की, बमुश्किल चार फीट ऊँची छोटी-छोटी दीवारों पर, फर्शी पत्थर की छत वाली आठ-दस झोपड़ियां दिख जाती है. जो यहाँ का एक गाँव बन जाती है. मैं अपने शोध कार्य के लिए ऐसे ही एक गाँव की ऐसी ही एक झोपड़ी में रहता हूँ. एक सर्पीली सुनसान छह किलोमीटर की पगडण्डी ही मेरी इस दुनिया को बाहर की दुनिया की सड़क से जोड़ती है. कुछ भी सामान लेना हो तो लगभग पन्द्रह किलोमीटर दूर सड़क किनारे बसे कटेकल्याण गाँव के साप्ताहिक हाट में आना पड़ता है

जादू टूटता है

                         GLOBALCULTURZ ISSN:2582-6808 Vol.INo.3 September-December2020  

Article-ID 2020110022/I  Pages240-248 Language:Hindi Domain of Study: Humanities & Social Sciences SubDomain: Literature-Short Story Title: जादू टूटता है    

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कैलाश बनवासी  41, मुखर्जी नगर,सिकोलाभाठा दुर्ग, छत्तीसगढ़  (भारत)

[E-mail: kailashbanwasi@gmail.com[[M+91-9827993920]                                                                                                   


Note in English A short Story in Hindi


About the Author                                                      

जन्म-10 मार्च 1965,दुर्ग

शिक्षा- बी0एस-सी0(गणित),एम00(अँग्रेजी साहित्य),बी.एड.

1984 के आसपास लिखना शुरू किया। आरंभ में बच्चों और किशोरों के लिए लेखन। 

कृतियाँ-

सत्तर से भी अधिक कहानियाँ देश की विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। अब तक चार कहानी संग्रह प्रकाशित-‘लक्ष्य तथा अन्य कहानियाँ’(1993),‘बाजार में रामधन’(2004) तथापीले कागज की उजली इबारत’(2008) ,प्रकोप तथा अन्य कहानियाँ (2015),’जादू टूटता है’(2019 )

कुछ कहानियाँ विभिन्न संग्रहों में चयनित।कहानियाँ गुजराती,पंजाबी,मराठी,बांग्ला तथा अँग्रेजी में अनूदित। संग्रहबाजार में रामधनमराठी में अनुदित।

एक उपन्यास -‘लौटना नहीं है’ 

सम-सामयिक घटनाओं तथा सिनेमा पर भी जब-तब लेखन। 

कहानियों पर रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर से पी.एच.डी.हेतु शोध-प्रबंध।समग्र कहानियों पर जे.एन.यू. नई दिल्ली से तथा देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर से कहानी संग्रहबाजार में रामधनतथा उपन्यासलौटना नहीं हैपर लघुशोध प्रबंध। 

पुरस्कार- कहानीकुकरा-कथाको पत्रिकाकहानियाँ मासिक चयन’(संपादक-सत्येन कुमार) द्वारा 1987 का सर्वश्रेष्ठ युवा लेखन पुरस्कार।

      कहानी संग्रहलक्ष्य तथा अन्य कहानियाँको जनवादी लेखक संघ इंदौर द्वारा प्रथम श्याम व्यास पुरस्कार। 

      दैनिक भास्कर द्वारा आयोजित कथा प्रतियोगितारचना पर्व’(2002) में कहानीएक गाँव फूलझरको   तृतीय पुरस्कार।

    संग्रहपीले कागज की उजली इबारतके लिए 2010 में प्रेमचंद स्मृति कथा सम्मान।

    वर्ष 2014 में वनमाली  कथा सम्मानगायत्री कथा सम्मान 2016

     

संप्रति- अध्यापन।

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 ‘‘सर,क्या मैं अंदर सकता हूँ ?’’ 

 प्रिंसिपल ने स्कूल के फंड से पैसे बैंक जाकर निकलवाने के लिए मुझे अपने कक्ष में बुलवाया था।प्राचार्य चेक साइन कर चुके थे।तभी कमरे का परदा जरा-सा हटाकर भीतर आने की इजाजत चाहता वह खड़ा था।

   प्राचार्य ने इशारे से उसे आने की अनुमति  दी।वह भीतर गया, आभर में केवल मुस्कुराते ही नहींहाथ जोड़े हुए।

   ‘‘ हाँ,कहो...?’’

रोटी की महक

GLOBALCULTURZ ISSN:2582-6808 Vol.INo.3 September-December2020  

Article-ID 2020110021/I  Pages234-239 Language:Hindi Domain of Study: Humanities & Social Sciences  Sub-Domain: Literature-Short Story Title:  रोटी की महक 

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सुभाष पंत  280, डोभालवाला, देहरादून-248001 (भारत)

[E-mail:scpantdw@gmail.com[ [M+91-8287788133]                                                                                                        


Note in English A short Story in Hindi


About the Author                                                      

प्रकाशित पुस्तकें

कहानी संकलन-तपती हुईज़मीन/चीफ़ के बाप की मौत/ इक्कीस कहानियां/मुन्नीबाई की प्रार्थना/जिन्न और अन्य कहानियां/दस प्रतिनिधि कहानियां/ एक का पहाड़ा/ छोटा होता हुआ आदमी/ पहाड़ की सुबह/ सिंगिंग बेल। उपन्यास-सुबह का भूला/पहाड़ चोर। नाटक-चिड़िया की आंख।

संप्रति: भारतीय वानिकी अनुसंधान उवं शिक्षा परिषद से वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद से सेवामुक्त।

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उसके पास बेचने के लिए कुछ भी नहीं बचा था। बदन पर एक खस्ताहाल कमीज़ और पैंट थी और पैरों में टूटी चप्पल। जाहिर है, इसमें से कोई भी चीज़ बिक नहीं सकती थी।

   शहर अपने पूरे विस्तार और गहमागहमी के साथ पसरा हुआ था। अगर शहर कुछ दबा-सिकुड़ा-सा होता तो संभव है कि उसकी भूख भी कुछ सिकुड़ जाती, लेकिन एकदम दूर दूर तक फैले महानगर में उसकी भूख भी फैलकर चौड़ी हो गई थी, जैसे उसके अनेक मुहाने खुल गए हों। इससे पार पाने के सिर्फ दो ही विकल्प उसके पास थे। भीख और चोरी। भीख मांगने की कलात्मक बारीकी उसे नहीं आती थी।