GLOBALCULTURZ Vol.III No.2 May-August 2022 ISSN:2582-6808
Article ID-2022-3-2-001 Pages: 501-507 Language: Hindi
Date of Receipt: 2022.05.10 Date of Review: 2022.05.25 Date of Pub: 2022.05.31
Domain of Study: Humanities & Social Sciences Sub-Domain: Literary Studies
डॉ. महेश पाल सिंह
भीमराव अम्बेडकर महाविद्यालय
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली, भारत
E-mail:maheshpalsingh001@gmail.com [M:+91-9968720378]
About the Author
भीमराव अम्बेडकर महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय में कार्यरत
शोध सारांश
हिन्दी साहित्य में प्रेमचन्द और उसके बाद तथा उनके साथ आने वाले साहित्यकारों ने उपर्युक्त दोनों विचार घटनाओं का मंथन विश्लेषण किया है, वृन्दावन लाल वर्मा का कथा साहित्य हमारे सामने जिस परिदृश्य को प्रस्तुत करता है वह विचार की इन्हीं धाराओं से प्रचालित हुआ है। भारत की सामाजिक स्थिति कई दृष्टियों से एक अपनी निजी ऐतिहासिक परिस्थितियों से प्रभावित होकर निर्मित हुई है जिसमें जातीयता का विशेष स्थान रहा है, यह जातीय दृष्टिकोण सदा ही एक-सा प्रभावी रहा हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता लेकिन इसका परावर्तन साहित्य में सदैव परिलक्षित हुआ है - भारत वर्ष में दीर्घकाल तक वर्ण व्यवस्था और संयुक्त परिवार समाज संगठन के आधार के मुख्य सतम्भ थे। ये दोनों तत्व आज भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में सामाजिक जीवन को प्रभावित कर रहे हैं।
कूट शब्द- हिंदी उपन्यास, समाज, साहित्य, असमानता